मंगलवार, 27 अगस्त 2019

यम नचिकेता वार्ता (ब्रह्मऋषि कृष्णदत्त)

यम नचिकेता वार्ता


28 जुलाई 1985 लाजपत भवन चंडीगढ़


मुनिवरो, आज हम तुम्हारे साथ पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा,आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया। हमारे यहां परंपरागत उसे कुछ मनोहर वेदवाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में मेरे देव परमपिता परमात्मा के ज्ञान और विज्ञान का वर्णन किया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा ज्ञान और विज्ञानमयी स्‍वरूप माने गए हैं। जितना भी ध्यान है अथवा विज्ञान है। वेद की प्रतिभा का स्रोत माना गया है। क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ से लेकर वर्तमान के काल तक नाना वैज्ञानिक हुए हैं। परंतु कोई भी विज्ञानवेता ऐसा नहीं हुआ जो परमपिता परमात्मा के ज्ञान और विज्ञान की सीमा पार कर सकें। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा सीमा से रहित है। वह सीमा में आने वाले नहीं हैं इसलिए उसका ज्ञान और विज्ञान नितांत है। एक-एक परमाणु में,एक-एक अणु-अंग में ब्रह्मांड का दर्शन होता है। इस सृष्टि के गर्भस्थल में नाना प्रकार की तरंगों में उस परमपिता परमात्मा की महती निहित है। सृष्टि के प्रारंभ से लेकर वर्तमान काल तक मानव अनुसंधानकर्ता रहा। विचार करता रहा। विज्ञान की पराकाष्ठा पर जाने का प्रयास करता रहा। परंतु जो वह उड़ता रहा। अंत में अतं हो गया। इंद्रियों का और चिंतन का विषय नहीं रहा। इसलिए उस परमपिता परमात्मा का ज्ञान है अथवा विज्ञान अनुसंधान, अनुसंधान करता के द्वारा किए गए अनुसंधान अंतिम चरण में मौन हो जाते हैं। गंभीर मुद्रा में परिणित हो जाते हैं। इसी प्रकार वेद मंत्र यह कह रहा है कि उस परमपिता की महती और उसके ज्ञान-विज्ञान के ऊपर मानव को विचार-विनिमय करना चाहिए। क्योंकि दो प्रकार की विज्ञान हमारे यहां परंपरागत है। उसे ही मानव के मस्तिष्क में स्‍थापित किया हैं। एक भौतिक विज्ञान है और दूसरा आध्यात्मिक। दोनों प्रकार का विज्ञान अपने अपने अनूठे हैं महान है। विज्ञान के ऊपर अन्वेषण करना प्रारंभ करता है ।एक चाहता है, मै प्रतिष्ठित हो जाऊं एक चाहता है मैं मृत्युंजय बन जाऊं। परंतु दोनों प्रकार में अपनी-अपनी भिन्नता है। विचारों में भिन्नता लिए हुए रहते हैं। एक वैज्ञानिक राष्ट्र से जुड़ा हुआ है। अणु और परमाणु में रत रहने वाला है। एक आध्यात्मिक विज्ञानवेता। इस भौतिकवाद के मार्ग से होता हुआ इंद्रियों के तथ्यों को जानता हुआ। अध्यात्मिकवाद के क्षेत्र को विजय कर लेता है और प्रभु के राष्ट्र में चला जाता है। आज मैं उसी अनोखे विचारों में ले जाना चाहता हूं। जो मोक्ष की पगडंडी को ग्रहण करना चाहते हैं। जो मानव अपने में अध्यात्मिक वादी बनना चाहते हैं तो वह कैसे बनते हैं? मेरे प्यारों,तुम्हें मैं उस आसन पर ले जाना चाहता हूं। जहां नाना ऋषि-मुनियों का विचार ब्रह्म बेताओं का विचार, जो मृत्युंजय बन गए हैं। जो मृत्युंजय की पिपासा में लगे हुए हैं। परंतु आज मैं तुम्हें उस पर ले जाना चाहता हूं। जहां मुनिवर ऋषि उद्दालक गोत्र ब्रह्मचारी नचिकेता ने आचार्य मृत्यु के गृह में प्रवेश किया। उन्हें अपना  विचार व्यक्त किया। अंतिम चरण में आचार्य के गृह में हुए उनका नाम आचार्य था। परंतु जब अध्यात्मिकवाद कर लिया। आचार्य कहलाने लगे,जब वह प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो मृत्यु आचार्य पत्नी ने कहा, प्रभु!आइए,कुछ अन्‍न और जल का पान कीजिए। मुनिवर उद्दालक गोत्र पुत्र नचिकेता ने कहा, हे मातेश्वरी, मैं जब तक भोजन नहीं करूंगा। जब तक मुझे आचार्य मृत्यु के दर्शन नहीं होंगे। मैं अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए आचार्य के समीप पहुंचा हूं। आपत्ति व्याकुल हो गई है। उन्होंने एक मंत्र का अध्ययन किया।


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