मंगलवार, 6 अगस्त 2019

शिव अवतार दुर्वासा एवं हनुमान

शिव जी के दुर्वासा अवतार की कथा
 नंदीश्वर जी कहते हैं, महामुनि अब तुम शंभू के एक दूसरे चरित को जिसमें शंकर जी धर्म के लिए दुर्वासा होकर प्रकट हुए थे।
 प्रेम पूर्वक सुनो।अनुसूया के पति ब्रह्मावेता तपस्वी अत्रि ने ब्रह्मा जी के दिशानिर्देश अनुसार पति-पत्नी रिघकूल पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से घोर तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर तीनों उनके आश्रम पर गए। उन्होंने कहा कि हम तीनों संसार के ईश्वर है हमारे अंश से तुम्हारे 3 पुत्र होंगे। जो तीनों लोकों में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। यह कहकर वे चले गए। ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा हुए जो देवताओं के समुंद्र में डाले जाने पर समुद्र से प्रकट हुए थे। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ सन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्त पुत्र उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया । दुर्वासा ने महाराज अंबरीष की परीक्षा की थी।जब सुदर्शन चक्र ने उनका पीछा किया तब शिवजी के आदेश से अंबरीश के द्वारा प्रार्थना करने पर चक्र शांत हुआ। उन्हें भगवान राम की परीक्षा की, काल ने मुनि का वेश धारण करके श्री राम के साथ यह शर्त की थी कि मेरे साथ बात करते समय श्री राम के पास कोई ना आएगा, उसका निर्वासन कर दिया जाएगा । दुर्वासा जी ने हटकर के लक्ष्मण को भेजा तब श्री राम ने तुरंत लक्ष्मण का त्याग कर दिया। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की परीक्षा की और उनको रुकमणी सहित रथ मे जोता । इस प्रकार दुर्वासा मुनि ने अनेक विचित्र-विचित्र चरित्र किया है ।अब इसके बाद हनुमान जी का चरित्र सुनो हनुमत रूप से शिव जी ने बड़ी उत्तम भलाई की है। इसी रूप से महेश्वर ने भगवान राम का परम हित किया था। वह सारा चरित्र सब प्रकार के सुखों को दाता है। उसे तुम प्रेम पूर्वक सुनो। एक समय की बात है जब अत्यंत अद्भुत लीला करने वाले गुणसाली भगवान शंभू को विष्णु के मोहिनी रूप का दर्शन प्राप्त हुआ ।तब वे कामदेव के बाण से आहत हुए की तरह क्षुब्ध हुए, उस समय उन परमेश्वर ने राम कार्य की सिद्धि के लिए अपना वीर्यपात किया। तब सप्त ऋषि यों ने उस वीर्य को पत्रपटिका में स्थापित कर लिया। क्योंकि शिव जी ने ही राम कार्य के लिए आदर पूर्वक उनके मन में प्रेरणा की थी। तत्पश्चात उन्होंने शंभू के उस वीर्य को राम कार्य की सिद्धि के लिए गौतम कन्या अंजनी के कान के रास्ते स्थापित कर दिया। तब समय आने पर उसे शंभू महान बलवाना शरीर धारण करके उत्पन्न हुए । उनका नाम हनुमान रखा गया महाबली हनुमान जी थे। उसी समय उदय होते सूर्य को छोटा सा फल समझकर तुरंत ही निकल गए ।जब देवताओं ने उनकी प्रार्थना की तब उन्होंने उसे महान कर दिया ।सब देवो ने उन्हें शिव का अवतार माना और वरदान दिया हनुमान अत्यंत हर्षित होकर अपनी माता के पास गए और उन्होंने यह सारा वृत्तांत आदर पूर्वक सुनाया। फिर माता की आज्ञा से धीर-वीर हनुमान ने सूर्य के निकट जाकर उनसे अनायास ही सारी विधा सीख ली ।तदनंतर वे श्रेष्ठ हनुमान सूर्य की आज्ञा से सूर्य अंश से उत्पन्न हुए सुग्रीव के पास चले गए ।इसके लिए उन्हें अपनी माता से भी आज्ञा मिल चुकी थी। नंदीश्वर ने भगवान राम का संपूर्ण चरित्र वर्णन करके इस प्रकार कपि श्रेष्ठ हनुमान ने श्रीराम का कार्य पूरा किया ।नाना प्रकार की लीला की असुरों का मान-मर्दन किया। भूतल पर राम भक्ति की स्थापना की और स्वयं भक्तगण होकर सीताराम को सुख प्रदान किया। वे रूद्र अवतार ऐश्वर्या साली हनुमान लक्ष्मण के प्राण दाता, संपूर्ण देवताओं के गवहारी और भक्तों का उद्धार करने वाले हैं। वे सदा तीनो लोक में रहते हैं। रामदूत नाम से विख्यात है। दैत्यों के सघांरक और भक्तवत्सल है।


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