सूत जी ने पूछा, महाज्ञानी शौनक जी आप संपूर्ण सिद्धांतों के ज्ञाता है! प्रभु मुझसे पुराणों की कथाओं के सार तत्व का विशेष रूप से वर्णन कीजिए! ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त होने वाले विवेक की वृद्धि कैसे होती है? तथा साधु पुरुष किस प्रकार अपने काम क्रोध आदि मानसिक विकारों का निवारण करते हैं ?इस घोर कलीकाल में जीव पर आए असुर स्वभाव के जो प्रभाव हो गए हैं !उस जीव समुदाय को शुद्ध बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है? आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइए जो कल्याणकारी वस्तुओं में भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करने वाले उपायों में भी सर्वोत्तम पवित्रकारक उपाय हो! तो वह समाधान ऐसा हो जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अंत: करण की विशेष शुद्धि हो जाए तथा उससे निर्मल चित् वाले पुरुषों को सदा के लिए शिव की प्राप्ति हो जाए! सूत जी कहते हैं, मुनि श्रेष्ठ शौनक तुम धन्य हो! क्योंकि तुम्हारे हृदय में पुराण कथा सुनने का विशेष प्रेम एवं लालसा है! इसलिए मैं शुद्ध-बुद्धि से विचार कर तुमसे परम उत्तम शास्त्र का वर्णन करता हूं !वह संपूर्ण शास्त्रों के सिद्धांत से संपन्न भक्ति आदि को बढ़ाने वाला तथा भगवान शिव को संतुष्ट करने वाला है! कानों के लिए रसायन अमृत समरूप तथा दिव्य है !तुम उसे श्रवण करो, परम उत्तम शास्त्र है! शिवपुराण जिसका पूर्व काल में भगवान शिव ने ही प्रवचन किया था! यह काल से प्राप्त होने वाले महान त्राश का विनाश करने वाला उत्तम साधन है! गुरुदेव व्यास ने सनतकुमार मुनि का उपदेश पाकर बड़े आदर से ही इस पुराण का प्रतिपादन किया है! कलयुग में उत्पन्न होने वाले मनुष्य को शिवपुराण शास्त्र को भगवान शिव का रूप समझना चाहिए और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिए! इसका पठन और श्रवण अमृत स्वरूप है !इससे शिव भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुंचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिव पद को प्राप्त कर लेता है! इसलिए संपूर्ण कल्याण हेतु मनुष्य ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है! अथवा इसके अध्ययन को अभिष्ट साधन माना है! इसी तरह इसका प्रेम पूर्वक पठन-पाठन संपूर्ण मनोवांछित फल देने वाला है! भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग कर के अंत में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है! यह शिव पुराण नामक ग्रंथ 24000 श्लोकों से युक्त है! इसकी सात सहितांए हैं! मनुष्य को चाहिए कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण करें! सात सहिताओं युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है!
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