बुधवार, 14 अगस्त 2019

नौ प्रकार की सृष्टिओं का निर्माण

नो प्रकार की सृष्टिओं का निर्माण
शिव की आज्ञा में तत्पर रहने वाले महाविष्णु ने अनंत रूप का आश्रय ले उस अंड में प्रवेश किया। उस समय उन परम पुरुष के सहस्त्र मस्तक,सहस्‍त्र नेत्र और सहस्र पैर थे। उन्होंने भूमि को सब ओर से घेरकर उस अंड को व्याप्त कर लिया। मेरे द्वारा भली-भांति स्तुति की जाने पर श्री विष्णु ने उस अंड में प्रवेश किया। तब वह 24 तत्वों का विकराल रूप अंड सचेतन हो गया। पाताल से लेकर सत्यलोक तक की अवधि वाले उस अंड के रूप में वहां साक्षात श्रीहरि ही विराज रहने लगे। उस विराट खंड में व्यापक होने से ही प्रभु  वैराजपुरुष कहलाए। पंचमुखी महादेव ने केवल अपने रहने के लिए स्वयं में कैलाश नगर का निर्माण किया जो सब लोको से ऊपर सुशोभित होता है। संपूर्ण ब्रह्मांड का नाश हो जाने पर भी बैकुंठ और कैलाश इन दोनों स्‍थानो का यहां कभी नाश नहीं होता। मुनि श्रेष्ठ, सत्यलोक का आश्रय लेकर मै यहां रहता हूं। तात, महादेव जी की आज्ञा से ही मुझ में सृष्टि रचने की इच्छा उत्पन्न हुई है। बेटा, जब मैं सृष्टि की इच्छा से चिंतन करने लगा। उस समय पहले मुझ में अनजान में ही पाप पूर्ण तामसिक सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ । जिसे अविद्या पंचक कहते हैं। तदनंतर प्रसन्न चित्त होकर शंभू की आज्ञा से पुनः अनासक्त भाव से सृष्टि का चिंतन करने लगा। उस समय मेरे द्वारा स्थावर वृक्ष आदि की सृष्टि हुई। जिसे मुख्य सर्ग कहते हैं। यह पहला सर्ग है। उसे देखकर तथा वहां अपने लिए पुरुषार्थ का साधक नहीं है, यह जानकर सृष्टि की इच्छा वाले ब्रह्मा से दूसरा सर्ग प्रकट हुआ। जो दुख से भरा हुआ है उसका नाम है। वह सर्ग भी पुरुषार्थ का साधक नहीं था। उसे भी पुरुषार्थ साधन की शक्ति से रहित जान तब मैं पुनः सृष्टि का चिंतन करने लगा। तब मुझसे शीघ्र ही तीसरे सात्विक सर्ग का प्रादुर्भाव हुआ। जिसे उधरवाश्रोता कहते हैं। यह देवसर्ग के नाम से विख्यात हुआ। देवसरग सत्यवादी तथा अत्यंत सुख दायक है। उसे भी पुरुषार्थ साधन की रुचि एवं अधिकार से रहित मानकर मैंने अन्य सर्ग के लिए अपने स्वामी श्री शिव का चिंतन आरंभ किया ।तब भगवान शंकर की आज्ञा से एक रजोगुण सृष्टि का भाव उत्पन्न हुआ । इस सर्ग के प्राणी मनुष्य है। जो साधन के उच्च अधिकारी है ।तदनंतर महादेव जी की आज्ञा से भूत आदि की सृष्टि हुई। इस प्रकार मैंने 5 तरह की विधि का वर्णन किया है। इनके प्राकृतिक भी कहे गए। जो ब्रह्मा के सानिध्य से प्रकृति से ही प्रकट हुए। पहला महत्व का सर्ग है दूसरा सूक्ष्म भूतों अर्थात  तन्‍मात्राओं का सर्ग और तीसरा अष्‍कारी सर्ग कहलाता है। इस तरह ही तीन प्राकृत सर्ग है। प्राकृत और विकृत दोनों प्रकार के सर्ग को मिलाने से 8 सर्ग होते हैं। इनके सिवा नवाँ कुमार सर्ग है। जो प्राकृत और विकृत भी है। इन सबके अवांतर भेद का में वर्णन नहीं कर सकता। क्योंकि उसका उपयोग बहुत थोड़ा है। अब द्विज आत्मक सर्ग का प्रतिपादन करता हूं। इसी का दूसरा नाम कुमार सर्ग है। जिसमें सनकनंदन आदि कुमारों की महत्वपूर्ण सृष्टि हुई है। मेरे चार मानस पुत्र है। जो मुझ ब्रह्मा के ही समान है। वह महान वैराग्य से संपन्न तथा उत्तम व्रत का पालन करने वाले हुए हैं। उनका मन सदा भगवान शिव के चिंतन में ही लगा रहता है। वह संसार से विमुक्त एवं ज्ञानी है। उन्होंने आदेश देने पर भी सृष्टि के कार्यों में मन नहीं लगाया। सनत कुमार के दिए हुए नकारात्मक उत्तर को सुनकर मैंने बड़ा भयंकर क्रोध प्रकट किया। उस समय मुझ पर ताम छा गया। उस अवसर पर मैंने मन ही मन भगवान विष्णु का स्मरण किया वे शीघ्र ही आ गए और उन्होंने मुझे समझाते हुए का तुम भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए तपस्या करो। श्रेष्ठ,श्रीहरि के अनुसार में घोर एवं उत्कृष्ट तप करने लगा। सृष्टि के लिए तपस्या करते हुए मेरी दोनों नासिका के मध्य भाग से जो उनका अपना ही नामक स्थान है। महेश्वर की तीन मूर्तियों में से अन्यतम पुनीत पूर्णांक एवं दयासागर अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए। जो जन्म से तेज की राशि, सर्वज्ञ तथा सर्वश्रेष्ठ है। नीललोहित नामधारी साक्षात उमाशंकर को सामने देख बड़ी भक्ति से मस्तक झुका उनकी स्तुति करके मैं बड़ा प्रसन्न हुआ और उन देवेश्वर से बोला प्रभु, आप भांती-भांती के जीवो की सृष्टि कीजिए। मेरी बात सुनकर देवाधिदेव महेश्वर में अपने ही समान बहुत से रुद्र घणो की सृष्टि की ।तब मैंने अपने स्वामी महेश्वर महारुद्र से फिर का देव आप ऐसे स्‍वरूप कि सृष्टि कीजिए जो जन्म और मृत्यु के ऐसे कर्म युक्त हो। मुनि श्रेष्ठ ऐसी बात सुनकर करुणासागर महादेव जी हंस पड़े और तत्काल इस प्रकार बोले। महादेव जी, जन्म और मृत्यु के भय से युक्त सृष्टि का निर्माण मै नहीं करूंगा। क्योंकि वह कर्मों के अधीन हो दुख के समुद्र में डूबे रहेंगे। मै तो दुख के सागर में डूबे हुए उनका उदाॄर मात्र करूंगा। गुरु का स्वरूप धारण करके उत्तम ज्ञान प्रदान कर उन सब को संसार सागर से पार कर लूंगा। प्रजापति। दुख में डूबे हुए सारे जीव की सृष्टि करो। मेरी आज्ञा से इस कार्य में प्रवृत्त होने के कारण तुम्हें माया नहीं बांध सकेगी। श्री भगवान महादेव देखते-देखते तत्काल तिरोहित हो गए। ॐ नमः शिवाय्


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