रविवार, 4 अगस्त 2019

मित्रता:अलग-थलग सबसे न्यारा रिश्ता

सिद्ध महायोगी गुरु गोरखनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष और भारत रक्षा मंच लोनी विधानसभा के अध्यक्ष  महंत चंद्रपाल भगत से फोन पर वार्ता की और वार्ता में मित्रता पर उन्होंने मुझे बहुत अच्छा संदेश देकर समझाया कि मित्रता एकजुटता का प्रतीक है और जीवन में मित्र होना बहुत जरूरी है! जिसके माध्यम से हम अपनी दिनचर्या पूरी करते हैं और आर्थिक सामाजिक और पारिवारिक कार्य पूरे कर पाते हैं!भारतीय परम्परा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है! हमारे जीवन में माता-पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है, लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की मिसाल देना नहीं भूलते !भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार से थे!उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों को पेट भरना भी मुश्किल हो गया था, गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्‍नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकती है लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकती ऐसे कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए!


ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुःखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा,इस पर सुदामा की पत्नी ने कहा- आप बताते रहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं, तो एक बार क्यों नहीं उनके पास चले जाते? वह आपके मित्र हैं तो आपकी हालत देखकर बिना मांगे ही कुछ न कुछ दे देंगे इस पर सुदामा बड़ी मुश्किल से अपने सखा कृष्ण से मिलने के लिए तैयार हुए उन्होंने अपनी पत्‍नी सुशीला से कहा कि मित्र के यहाँ खाली हाथ मिलने नहीं जाते इसलिए कुछ उपहार उन्हें लेकर जाना चाहिए.उनके घर में अन्न का एक दाना तक नहीं था, कहते हैं कि सुदामा के बहुत जिद करने पर उनकी पत्‍नी सुशीला ने पड़ोस चार मुट्ठी चावल मांगकर लाईं और वही कृष्ण के लिए उपहार के रूप में एक पोटली में बांधकर दिया !सुदामा जब द्वारका पहुंचे तो वहां का वैभव देखकर हैरान रह गए, पूरी नगरी सोने की थी! लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे सुदामा किसी तरह से लोगों से पूछते हुए कृष्ण के महल तक पहुंचे और द्वार पर खड़े पहरेदारों से कहा कि वह कृष्ण से मिलना चाहते हैं, उनकी हालत देखकर द्वारपालों ने पूछा कि क्या काम है? सुदामा- कृष्ण मेरे मित्र हैं !द्वारपालों ने महल में जाकर भगवान कृष्ण को बताया कोई गरीब ब्राह्मण उनसे मिलने आया है! वह अपना नाम सुदामा बता रहा है, सुदामा नाम सुनते ही भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े वहाँ मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है !भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा कीं कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है? इस पर सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे, ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली और भगवान कृष्ण सूखे चावल ही निकालकर खाने लगे, सुदामा की गरीबी देखकर उनके आखों में आंसू आ गए !सुदामा कुछ दिन द्वारिकापुरी में रहे लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सकें ! विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आएं और उनसे गले लगे ! सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचने लगे कि पत्नी पूछेगी कि क्या लाए हो तो वह क्या जवाब देंगे?सुदामा घर पहुंचे तो वहां उन्हें अपनी झोपड़ी नजर ही नहीं आई! वह अपनी झोपड़ी ढूंढ़ रहे थे तभी एक सुंदर सा आलीशान घर से उनकी पत्नी बाहर आईं, वे महंगे कपड़े पहने थी सुशीला ने सुदामा से कहा- देखा कृष्ण का प्रताप, हमारी गरीबी दूरकर आपके मित्र ने हमारे सारे दुःख हर लिए सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया, उनकी आंखों में खूशी के आंसू आ गए !मित्रों! कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानि सच्ची मित्रता यही थी कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था, दोस्ती के इसी सुन्दर भावों को लोग आज भी उदाहरण देते हैं !कृष्ण-सुदामा की दोस्ती लोगों को इतनी प्रभावित करती है कि बहुत से लोग तो कॉलरट्यून में भी- अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो. की धुन लगा रखते हैं !


संदीप गुप्ता


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