सोमवार, 5 अगस्त 2019

काल भैरव जन्म (शिव-महापुराण)

नंदीश्वर ने कहा, महामुनि,परमेश्वर शिव उत्तम-उत्तम लीलाएं रचने वाले तथा सत पुरुषों के प्रेमी हैं।उन्होंने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव स्वरूप से अवतार लिया था। इसलिए जो मनुष्य मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी को काल भैरव के संघट उपवास करके रात्रि में जागरण करता है। वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य अन्यत्र भी भक्ति पूर्वक जागरण सहित इस व्रत का अनुष्ठान करेगा। वह भी महापापो से मुक्त होकर सद्गति को प्राप्त हो जाएगा। प्राणियों के लाखो जन्म में किए हुए जो पाप है वे सब के सब काल भैरव के दर्शन से निर्मल हो जाते हैं। जो मूर्ख काल भैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है। वह इस जन्म में दुर्गति को प्राप्त होता है, जो लोग विश्वनाथ के भक्त है परंतु काल भैरव की भक्ति नहीं करते हैं। उन्हें कष्‍ठ की प्राप्ति होती है। काशी में तो इसका विशेष प्रभाव पड़ता है।जो मनुष्य वाराणसी में निवास कर के काल भैरव का भजन नहीं करता उसके पाप शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ते रहते हैं। जो काशी में प्रत्येक सोमवार की कृष्ण अष्टमी के दिन कॉल राज का भजन पूजन नहीं करता। उसका पुण्य कृष्ण पक्ष के चंद्रमा के समान क्षीण हो जाता है।


उसके पश्चात नंदीश्वर ने वीरभद्र तथा साराबअवतार का वृत्तांत सुनाया। ब्रह्मपुत्र, भगवान शिव जिस प्रकार प्रसन्न होकर विश्वानर मुनि के घर अवतरण हुए थे शशि मौलिक के उस चरित्र को तुम प्रेम पूर्वक श्रवण करोउ।उस समय वे तेज की निधि अग्नि रूप से सर्वात्मक परम प्रभु शिव अग्नि लोक के अधिपति, रूप से ग्रह पति नाम से अवतरित हुए थे। पूर्व काल की बात है। नर्मदा के रमणीय तट पर नरम पुर नाम का एक नगर था। उसी नगर में विश्वानर नाम के एक मुनि निवास करते थे ।उनका जन्म शांडिल्य गोत्र में हुआ थाा। वह परम पावन पुण्यात्मा शिवभक्त के निधि और जितेंद्र थे। ब्रह्मचर्य आश्रम में उनकी बड़ी निष्ठा थी ।वह सदा तप में तत्पर रहते थे। फिर उन्होंने सूची स्मृति नाम की सदगुणवती कन्या से विवाह कर लिया और वे उचित कर्म करते हुए देवता तथा पितरों को प्रिय लगने वाला जीवन बिताने लगे । इस प्रकार बहुत समय व्यतीत हो गया। तब उनकी सूची स्मृति को उत्तम व्रत का पालन करने वाली थी ।अपने पति से बोली प्राणनाथ स्त्रियों के योग्य जितने आपकी कृपा से आपके साथ रहकर परंतु मेरे हृदय में एक लालसा चिरकाल से वर्तमान है। औरतों के लिए उचित भी है उसे आप करने की कृपा करें। यदि मैं वर पाने के योग्य और आप मुझे वर देना चाहते हैंं। तो मुझे महेश्वर सरीखा पुत्र प्रदान कीजिए। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं चाहिए नंदीश्वर जी कहते हैंं। मुनि पत्नी की बात सुनकर पवित्र व्रत परायण ब्राह्मण विश्वानंद क्षण भर के लिए समाधिस्थ हो गए और हृदय में यह विचार करने लगेे। अह ,मेरी इस पत्नी ने उचित नियम के साथ चलते दुर्लभ कामना की है। यह तो मेरे मनोरथ पद से बहुत दूर है। शिवजी तो सब कुछ करने में समर्थ  ऐसा प्रतीत होता है मानो उन्होंने ही इसके मुख्य में बैठकर वाणी रूप से ऐसी बात कही है। विश्वासनर ने कहा,भगवन आप ही एकमात्र ऐसे ब्रह्मा हैै। यह सारा जगत आप का ही स्वरूप है ।यहां अनेक कुछ भी नहीं है। यह बिल्कुल सत्य है कि एकमात्र रूद्र के अतिरिक्त दूसरे किसी की सत्ता नहीं है। इसलिए मैं आप महेश की शरण ग्रहण करता हूं। शंभू, आप ही सबके करता-हरता है तथा जैसे धर्म एक होते हुए भी अनेक रूप से दिखता है। उसी प्रकार आप भी एक रूप होकर नाना रूपों में व्याप्त है। फिर भी आप रुप रहीत है रूप सहित है इसलिए आप ईश्वर के अतिरिक्त में किसी दूसरे की शरण नहीं ले सकता। जैसे रज्जू सरसिटी में चांदी और मृग मरीचिका में जल प्रवाह  है उसी प्रकार जिसे जान लेने पर विश्व प्रपंच मीथ्‍या साबित होता है मै उन ईश्वर की शरण लेता हूं। संभल में जो शीतलता अग्नि में दहक का, सूर्य में गर्मी, चंद्रमा में आह्लाद, कारिता पुष्प में दूध में घी विधमान है वह आपका ही स्वरूप है। आपके चरणों की शरण,आप कान रहित होकर शब्द सुनते हैं ।नासिका रहिित सूघंते हैं पैर न होने पर भी दूर तक चले जाते हैं नेत्र हीन होकर सब कुछ देखते हैं ।और यही समझता है। भला आपको सरूप से कौन जान सकता है इसलिए मैं आपकी शरण में रहता हूंं। ईश्वर,न आपका कोई  जन्म है ना नाम है ना रूप है और ना देश है। ऐसा होने पर भी आप त्रिलोकी के अधिितिप तथा संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। इसलिए मैं आपका भजन करता हूं परमेश्वर आप सर्व स्वरूप है ।यह सारा विश्व प्रपंच आपसे ही प्रकट हुआ हैै। आप गोरीनाथ दिगंबर और परम शांति,बाल युवा और वृद्ध रूप में आप ही वर्तमान है।ऐसी कौन सी वस्तु है जिसमें आप व्याप्त ना हो अतः मैं आपके चरणो में नतमस्तक हूँ ।


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