शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

अधिकारी खा रहे काजू-बादाम, पुष्कर मंदिर


चार करोड़ रुपए के फंड के बाद भी विश्व के एक मात्र ब्रह्मा मंदिर की इमारत जर्जर। 
भगवान को सब्जी रोटी का भोग, अफसर खा रहे हैं काजू-बादाम। 
जब भाजपा की सीएम वसुंधरा ने कुछ नहीं किया तो कांग्रेस के अशोक गहलोत क्यों करें?
पिछले ढाई वर्ष से पुष्कर स्थित विश्व के एक मात्र ब्रह्मा मंदिर की देखरेख का काम राज्य सरकार द्वारा गठित प्रबंध कमेटी कर रही है। इस कमेटी का अध्यक्ष अजमेर के जिला कलेक्टर को बना रखा है और कमेटी में क्षेत्र के एसडीएम, तहसीलदार आदि सदस्य है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार की कमेटी के कब्जे के बाद ब्रह्मा मंदिर की आय कई गुना बढ़ गई। आय का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कमेटी के पास अब तक चार करोड़ रुपए जमा हो गए हैं। यह बात अलग है कि ब्रह्मा मंदिर में जब महंत रहे तब मंदिर की पंरपरा के अनुरूप बाहर से आने वाले साधु संतों का सत्कार और तीज त्यौहारों पर धार्मिक कार्यक्रम होते थे, लेकिन अब जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी का कब्जा है, इसलिए विश्व विख्यात ब्रह्मा मंदिर का प्रबंध सरकारी ढर्रे पर चल रहा है। मंदिर की इमारत जर्जर स्थिति में है, लेकिन सरकारी कारिंदों को कोई चिंता नहीं है। मंदिर परिसर की दीवारें जगह जगह से टूटी पड़ी है तथा छत का प्लास्तर श्रद्धालुओं पर गिर रहा है। इतना ही नहीं बरसात के मौसम में छतों से पानी भी टपक रहा है।  जगह-जगह गंदगी है तो मंदिर का सामान कबाड़ हो रहा है। हालात इतने खराब है कि मंदिर द्वारा संचालित गौशाला की सफाई तक नहीं हो रही है। वैसे तो गौशाला की गायों को रखने में सरकारी कारिंदों की कोई रुचि नहीं हंै। मुश्किल से दस गाय होंगी, जिनकी देखभाल भी नहीं हो पा रही है। ब्रह्मा मंदिर के अंतर्राष्ट्रीय महत्व और  आतंकियों की धमकी को देखते हुए मंदिर परिसर में सशस्त्र सुरक्षा बल तैनात है, लेकिन फिर भी सरकारी प्रबंध कमेटी सुरक्षा गार्डों के नाम पर मोटी राशि प्रतिमाह खर्च  कर रही है। सवाल उठता है कि जब चार करोड़ की राशि बैंक में जमा है तो फिर ब्रह्मा मंदिर की ऐतिहसिक इमारत की मरम्मत क्यों नहीं करवाई जाती? यदि कोई हादसा हो गया तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या सरकार का उद्देश्य ब्रह्मा मंदिर से कमाई करने का कही है? महंत सोमपुरी के निधन के बाद जब सरकार ने मंदिर पर कब्जा किया तब कहा गया था कि मंदिर से प्राप्त होने वाली राशि को श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर ही खर्च किया जाएगा, लेकिन पिछले ढाई वर्ष से सरकार ने मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा देने की कोई योजना नहीं बनाई। 
नेता और अफसर खा रहे है काजू बादाम:
महंत के कार्यकाल में मंदिर की परंपरा के अनुरूप रोजाना स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग भगवान के लगाया जाता था, लेकिन सरकारी कारिंदे, अब सिर्फ सब्जी रोटी का भोग लगाते हैं। यानि सरकार ने भोग के मामले मेंभी धार्मिक परंपरा को खत्म कर दिया है। यह बात अलग है कि मंदिर में जब कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी परिवार सहित दर्शन के लिए आता है तो उसे काजू बादाम का नाश्ता करवाया जाता है। चूंकि धनराशि खर्च करने का अधिकार भी कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी के पास है, इसलिए मंत्रियों और अफसरों को खाने पिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। 
कांग्रेस के सीएम गहलोत क्यों करे?
इस समय राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए ब्रह्मा मंदिर की व्यवस्थाएं सुधारने की जिम्मेदारी कांग्रेस सरकार की है। लेकिन सवाल उठता है कि अशोक गहलोत सुधार क्यों करें? असल में मंदिर पर सरकारी कब्जा करवाने का कृत्य तो भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने किया था। यूं तो वसुंधरा राजे स्वयं को बेहद धार्मिक होने का दिखावा करती है, लेकिन आज ब्रह्मा मंदिर की दुर्दशा के लिए वसुंधरा राजे ही जिम्मेदार है। महंत सोमपुरी के निधन के बाद सरकारी कब्जे का फैसला वसुंधरा राजे ने ही किया। जब वसुंधरा राजे अपने कार्यकाल में मंदिर में धार्मिक गतिविधियों की रक्षा नहीं कर सकी तो अब कांग्रेस सरकार से उम्मीद करना बेमानी है। 
सृष्टि के रचियता है ब्रह्मा:
भारत की सनातन संस्कृति में माना जाता है कि सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा हैं। लेकिन आज उनके मंदिर की स्थिति ही जर्जर हो रही है। जिन ब्रह्माजी  ने इस सृष्टि को बनाया उनके मंदिर को मरम्मत की दरकार है। भारत की लालफीताशाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंदिर से कमाई तो की जा रही है, लेकिन श्रद्धालुओं को सुविधा नहीं दी जा रही है। जिन दान पात्रों से चार करोड रुपए एकत्रित किए गए उन दान पात्रोंको भी श्री सीमेंट जैसे संस्थान से मुफ्त में लिया गया है। 
रिटायर कर्मचारी के भरोसे मंदिर:
विश्व विख्यात ब्रह्मा मंदिर अजमेर तहसील के रिटायर कर्मचारी सत्यनारायण पारीक के भरोसे हैं। पारीक गत वर्ष 31 मई को रिटायर हो गए, लेकिन ब्रह्मा मंदिर का मोह नहीं छोड़ा। रिटायरमेंट के बाद संविदा कर्मी के तौर पर पारीक ने नियुक्ति पा ली। सवाल उठता है कि पारीक का मंदिर प्रबंधन में इतना मोह क्यो हैं? कमेटी ने पारीक को मंदिर परिसर में एक कमरा दे रखा है जिसमें बैठ कर पारीक दिनभर पंचायत करते हैं। पारीक के व्यवहार को लेकर कई बार शिकायतें हो चुकी है, लेकिन कमेटी कोई सुनवाई नहीं करती। 
एस.पी.मित्तल


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