मंगलवार, 30 जुलाई 2019

शिवउपासना से वंचित केतकी पुष्प

केतकी एक छोटा सुवासित झाड़ होता हैं। इसकी पत्तियाँ लंबी, नुकीली, चपटी, कोमल और चिकनी होती हैं! जिसके किनारे और पीठ पर छोटे छोटे काँटे होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक सफेद, दूसरी पीली। सफेद केतकी को लोग प्राय: 'केवड़ा' के नाम से जानते और पहचानते हैं और पीली अर्थात्‌ सुवर्ण केतकी को ही केतकी कहते हैं।


बरसात में इसमें फूल लगते हैं जो लंबे और सफेद होते है! और उसमें तीव्र सुगंध होती है। इसका फूल बाल की तरह होता है और ऊपर से लंबी पत्तियों से ढका रहता है। इसके फूल से इत्र बनाया और जल सुगंधित किया जाता है। इससे कत्थे को भी सुवासित करते हैं। केवड़े का प्रयोग केशों के दुर्गंध दूर करने के लिए किया जाता है। प्रवाद है कि इसके फूल पर भ्रमर नहीं बैठते और शिव पर नहीं चढ़ाया जाता। पुरातन काल में  केतकी के पुष्प  के द्वारा सनातन सत्य का विरोध किया गया अथवा असत्य के समर्थन में पक्षपात किया गया! जिसके कारण केतकी के स्वर्ण फूल को शिव उपासना से भिन्न कर दिया गया! इसी वजह से केतकी का फूल  शिवालय अथवा शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता है!  शास्त्रोक्त यदि शिव उपासना में केतकी के फूल का उपयोग किया जाता है तो वह अभिष्‍टो को सिद्ध करने में अनुपयोगी रहता है! प्रकृति के अनुरूप केतकी के पुष्प ,तना पत्ती आदि सभी का प्रकृति में विभिन्न उपयोग किया जाता है! इसकी पत्तियों की चटाइयाँ, छाते और टोपियाँ बनती हैं। इसके तने से बोतल बंद करने वाला काग बनाए जाते हैं। कहीं-कहीं लोग इसकी नरम पत्तियों का साग भी बनाकर खाते हैं। वैद्यक में इसके शाक को कफनाशक बताया गया है।


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