अब मैं तुम्हें संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए शिव पुराण के श्रवण की विधि बताता हूं!पहले किसी ज्योतिषी को बुलाकर दान-मान से संतुष्ट करके अपने सहयोगी लोगों के साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधा के कथा की समाप्त होने के उद्देश्य से शुभ मुहूर्त का अनुसंधान कराएं! प्रयतन पूर्वक देश-देश में, स्थान-स्थान पर यह संदेश भेजें कि हमारे यहां शिव महापुराण की कथा होने वाली है! अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले लोगों को उसे सुनने के लिए अवश्य पधारिए! कुछ लोग भगवान श्री हरि की कथा से बहुत दूर पड़ गए! कितने ही स्त्री-शूद्र आदि भगवान शंकर की कथा कीर्तन से वंचित रहते हैं! उन सब को भी सूचना हो जाए, ऐसा प्रबंध करना चाहिए! देश-देश में जो भगवान शिव के भक्तों तथा शिव कथा के कीर्तन और उनके लिए उत्सुक हो! उन सब को आदर पूर्वक आमंत्रण भेजना चाहिए! आए हुए लोगों का सब प्रकार से आदर-सत्कार करना चाहिए! शिव मंदिर में, वनप्रांत में अथवा घर में शिव पुराण की कथा सुनने के लिए उत्तम स्थान का निर्माण करना चाहिए! केले के खंभों से सुशोभित पूजा का मंडप तैयार कराया जाए! फल-पुष्प आदि से अलंकृत करें !ध्वजा-पताका लगा दे ,भगवान शिव के प्रति सत्कार से उत्तम भक्ति करनी चाहिए! वही सब तरह से आनंद का विधान करने वाले है! परमात्मा भगवान शंकर के लिए दिव्य योगासन का निर्माण करना चाहिए तथा कथावाचक के लिए भी एक ऐसा ही आसन होना चाहिए! श्रदालुओ के लिए भी यथा योग्य स्थानों की व्यवस्था करनी चाहिए !अन्य लोगों के लिए साधारण स्थान रखना चाहिए! जिसके मुख से निकले शब्द देहधारियों के लिए कामधेनु के समान अभिष्ट फल देने वाली होती है! उस पुराण वक्ता विद्वान के प्रति तुच्छ बुद्धि कभी नहीं करनी चाहिए! संसार में जन्म तथा गुणों के कारण कई गुरू होते हैं ! परंतु उनमें पुराणों का ज्ञाता हीपरम विद्वान माना गया है! पुराण वेता पवित्र घृणा पर विजय पाने वाला साधु और दयालु होना चाहिए ! ऐसा प्रवचन कुशल विद्वान कथा को कहे! सूर्य उदय से आरंभ करके साढे तीन पहर तक उत्तम बुद्धि वाले विद्वान पुरुष को शिवपुराण की कथा संवाद रीति से बाचनी चाहिए !मध्यकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिए! जिससे कथा कीर्तन से अवकाश पाकर लोग मल-मूत्र का त्याग कर सके ! जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकार के कर्मों में भटक रहे हो, काम के वश में हो,विकारों से युक्त हो, स्त्री में आसक्ती रखते हो और पाखंड पूर्ण बात कहते हो!वह पुन्य के भागी नहीं होते! आलौकिक चिंता तथा गृह एवं पुत्र की चिंता को छोड़कर कथा में मन लगाए रहते हैं! उन सद्बुद्धि को पुरुषोत्तम फल की प्राप्ति होती है!
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