शनिवार, 20 जुलाई 2019

प्रेरणा से ओतप्रोत आराध्य देव (भाव-दर्शन)

 शिव से संदेश


भगवान शंकर हमारे आराध्य देव हैं, जिन्हें हम महेश भी कहते हैं। महेश यानि महान, सर्वोच्च, सर्वोत्कृष्ट ईश्वर ही महेश्वर हैं। जिनकी पूजन से हमको जीने की प्रेरणा मिलती है, जीवन प्रबन्धन, तनाव कम करने, जीवन में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा मिलती है। पारिवारिक, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन को कैसे संतुलित रखें? कैसे सामंजस्य स्थापित करें? भगवान शंकर के स्वरुप से हमें शिक्षा लेनी चाहिए।


देखिए, 1. भगवान शंकर के गले में सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर (मोर सांप को खाता है, सांप चूहे को खाता है, फिर भी तीनों साथ)


2. नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह (सिंह गाय-बैल को खाता है)


3. जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी फिर भी एक साथ)


4. चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी फिर भी एक साथ)


5. शरीर मे भभूत और साथ में भूतों की सेना (भभूत से भूत भागते हैं, फिर भी एक साथ)


6. देवाधिदेव हैं, महादेव हैं, महेश्वर हैं, लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन


7. एक तरफ तांडव नृत्य और दूसरी तरफ गहन समाधि (बिल्कुल अलग-अलग स्वरूप)


8. एक तरफ बड़े-बड़े राक्षसों से लड़ते है और दूसरी तरफ गहन समाधि में ध्यानस्थ हो जाते हैं।



इतने विपरीत स्वभाव के वाहन, गण और स्वरूप के बाद भी, भगवान शंकर सबको साथ लेकर चलते हैं, चिंता से मुक्त रहते हैं। भगवान शंकर हमें प्रेरणा देते हैं कि जीवन शांतिमय हो, संतुलित हो। तनाव रहित हो। सामंजस्य ऐसा कि सबको साथ लेकर चलने की शक्ति हो, सामर्थ्य हो। सबका सम्मान हो, आदर हो। किन्तु हम जरा से विपरीत स्वभाव वाले मित्र, साथी, सम्बन्धी, सखा की सोच से, विचारों से बातों से तनाव में आ जाते हैं। खीझ उठते हैं, झुंझला जाते हैं। चिड़चिड़ाने लगते हैं। संतुलन खो बैठते हैं। हम छोटी-छोटी समस्या में उलझे रहते हैं। तनाव से इतने ग्रसित कि नींद तक नहीं आती। छोटी-छोटी कठिनाई से डर जाते हैं। ऐसे में हम न सिर्फ अपना समय बर्बाद करते हैं बल्कि ऊर्जा भी नष्ट करते हैं।


हम भगवान शंकर की पूजा तो करते हैं, लेकिन उनके गुणों को धारण नहीं करते। उनसे प्रेरणा नहीं लेते। उनसे शिक्षा नहीं लेते। हर किसी ने कभी न कभी इस बात का अनुभव जरूर किया होगा कि नजरिया बदलते ही चीजें अलग दिखाई देने लगती हैं। नकारात्मक चीजें सकारात्मक लगने लगती हैं और लोगों में कमियों की जगह खूबियां नजर आने लगती हैं।


पारिवारिक, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में हमें कई लोगों से मिलना होता है, उनके साथ जीवनयापन करना होता है, काम करना होता है। यह जरूरी नही कि हर जगह एक जैसी विचारधारा वाले लोग रहते हों, हमारी तरह ही सोचने वाले लोग हों, जरूरी नहीं। हमसे अलग सोच रखने वाले लोग भी मिलेंगे, अलग विचारधारा वाले लोग भी मिलेंगे। ऐसी स्थिति में संतुलन और सामंजस्य आवश्यक है। बेहतर जीवन-प्रबन्धन और स्वस्थ रूप से कार्य को गतिशील बनाने के लिए यह संतुलन जरूरी है, यह सामंजस्य जरूरी है


वशिष्ठ चौबे 


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