सोमवार, 8 जुलाई 2019

परिवर्तन का नजरिया ( संपादकीय)


क्यूँ न अजमेर से शुरू करें यह अनूठी पहल ?


नरेश राघानी


भाई A फ़ॉर क्या होता हैं ? अब कोई कुछ भी कहे मैं तो A फ़ॉर अजमेर ही कहूँगा भाई !और जब अंग्रेजी वर्णमाला की शुरुआत ही A से है तो हम A फ़ॉर अजमेर वासी हैं यार !सबसे पहले हम ही कोई नई शुरुआत करें तो क्या बुरा है ?चलिये बताता हूँ क्या ..


तो साहब !ध्यान से सुनियेगा। यूँ तो कई समाजसेवी संस्थाएं हैं अजमेर में। और बहुत सारा समाज सेवा का काम काफी वर्षों से हर व्यक्ति अपने अपने नजरिए से करता आ रहा है। परंतु आज ऑनलाइन बैठे बैठे मुझे मुंबई वर्सोवा क्षेत्र के लोगों द्वारा चलाए जा रहे बड़े खूबसूरत अभियान की कुछ तस्वीरें देखने को मिली। मैं यही आईडिया अजमेर वासियों से शेयर करना चाहता हूँ।
अजमेर में व्याप्त सैकड़ों समाजसेवी संस्थाएं अगर चाहे तो मिलकर बड़े आराम से यह पुनीत कार्य कर सकती है। बल्कि मैं तो यह कहूंगा अगर राज्य सरकार भी इस तरह की पहल करें तो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
मैं यहां पर बात कर रहा हूँ मार्किट में , रेजिडेंशियल बिल्डिंग के बाहर , धार्मिक स्थलों आदि जैसी सार्वजनिक जगहों पर जनता फ्रिज लगाने के बारे में। यानी कि सबका फ्रिज ... जिसे इसमें भोजन रखना हो रख दे। और जिसे भूख लगी हो वह उसमें से बे रोक टोक भोजन निकाल कर खा ले। आए दिन हमारे घर में आयोजनों , शादियों या पार्टियों के दौरान , या कभी-कभी हमारे घर में ज्यादा भोजन बन जाने की वजह से ,भी जो कुछ बच जाता है। वह खाना बजाय यूँ ही रखे रखे खराब कर देने के आम नागरिकों द्वारा उस जनता फ्रिज में ऑफिस के लिए निकलते वक्त पॉलिथीन में डाल के रख दिया जाए । और उस जनता फ्रिज पर हर उस इंसान का अधिकार हो जिसको भूख लगी है। या फिर जिसके पास आज खाने के लिए रोटी नहीं है।बड़ी आसानी से शहर भर में इस तरह के जनता फ्रिज लगाए जा सकते हैं। जैसे लोग किसी ज़माने में ठंडे पानी की प्याऊ लगवाते थे अपने बुजुर्गों की याद में , बिल्कुल उसे तरह यह संभव है। जिसके माध्यम से सैकड़ों जरूरतमंद लोगों की पेट की आग शांत की जा सकती है । इससे जनता फ्रिज में घर का बचा हुआ खाना रखने वाले को भी एक संतुष्टि का अनुभव होगा कि उसका खाना किसी और के काम आया। और सैकड़ों ज़रूरतमंद लोगों , बच्चों, महिलाओं और रोटी के अभाव में भूखे सो जाने वालों का जीवन भी थोड़ा आसान हो जाएगा । जिनके पास मांग कर खाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।* इस से उन्हें भी हाथ फैला कर मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और जागरूक नगरवासी इन ज़रूरत मंद लोगों के स्वाभिमान का ख्याल रख कर संतुष्ट महसूस कर सकेंगे।


राज्य सरकार भी चाहे तो इसे योजना के तहत चला सकती है। इसे अनिवार्यता की शर्तों में शामिल कर हर बनाई जाने वाली रेजिडेंशियल बिल्डिंग के साथ जोड़ सकती है। जिसके तहत ऐसा जनता फ्रिज हर बिल्डिंग के बाहर लगाना बिल्डर के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए। ताकि घर से निकलते हुए उस बिल्डिंग का हर निवासी अपने घर का बचा हुआ खाना उसमें रख दे । ताकि यह भोजन किसी और ज़रूरतमंद के काम आए। यही प्रयोग स्कूलों , धार्मिक स्थलों, रेन बसेरों , रेलवे और बस स्टेशन आदि सार्वजनिक स्थानों पर आम समाज सेवी संस्थाओं द्वारा भी किया जा सकता है।


यहाँ बात केवल एक आईडिया शेयर करने की नहीं है। बल्कि यह बात है सामाजिक सरोकार से जोड़ कर अपने आप में और आने वाली पीढ़ियों में रोटी की कद्र के संस्कार को असीम सीमाओं तक ले जाने की भी है। जहाँ सबके घर का भोजन ,सबके लिए भोजन .... सीधा जनता फ्रिज से !


सुनने में ज़रा कठिन लग रहा है न ? परंतु यकीन मानिए अगर अजमेरवासी करने पर उतर आए तो कोई बड़ी मुश्किल बात नहीं है। राजस्थान में अजमेर ऐसा पहला शहर होगा जो ऐसे अनूठे सेवा माध्यम की शुरुआत कर सकेगा। आखिर स्मार्ट सिटी के स्मार्ट लोग हैं हम सब !!! ऐसी पहल हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?


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