सोमवार, 29 जुलाई 2019

कर्तव्यनिष्ठ नहीं है झारखंड सरकार

"मन" में एक "विचार", जिससे "कार्य" में होगा, हद तक "सुधार"


विवेक चौबे


गढ़वा ! झारखंड सरकार वाकई में चाहती है कि गरीबी दूर हो,गांव-गांव सड़क,घर-घर बिजली,पीने व सिंचाई के लिए पानी आदि की व्यवस्था उपलब्ध हो।सरकार ने सड़क के लिए योजना दिया भी तो योजना का नाम बरक़रार रखने के लिए कार्य मात्र कराया जाता है।कार्य में अनियमितता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता की ठीक निर्माण नहीं होने पर जर्जर की स्थिति के साथ कई समस्या उतपन्न हो जाएगी!


इन दिनों या कभी भी किसी न किसी सड़क,नहर आदि के कई योजनाओं में देखा जाता है की कहीं न कहीं,कोई न कोई गड़बड़ी निश्चित रूप से अवश्य ही है।


आखिर क्यों,एक विचारनीय तथ्य है


"मन" में एक "विचार", जिससे "कार्य" में हद तक तब होगा "सुधार"जी हाँ,इसी तथ्य पर पत्रकार के मन में एक विचार आता है की किसी सड़क के अलावे अन्य किसी योजना का शिलान्यास कोई जनप्रतिनिधि या कोई पदाधिकारी ही करते हैं।जब शिलान्यास किसी के द्वारा किया जाता है तो उस वक्त बड़े ही धूम-धाम से विधिवत भूमि का पूजन-अर्चना किया जाता है।ग्रामीण भी उस दौरान योजना से काफी प्रसन्न होते हुए शिलान्यास कर्ता के गले में पुष्प माला डालकर स्वागत करने, प्रसाद पाने व हौसले के साथ सुंदर लुभावने उनके वचन को श्रवण करने के लिए पंक्ति में या भीड़ के रूप में एकत्रित होते हैं।वहां एक सुंदर सा बनावटी पत्थर स्थापित कर बजापते सुनहरे अक्षरों में योजना का नाम व कहाँ से कहाँ तक निर्माण होना है व दिनांक अंकित हुआ करता है।वहां तक तो बिल्कुल ठीक-ठाक रहता है,किन्तु शिलापट पर उतना मात्र अंकित रहने से लोगों को उस योजना के सम्बन्ध में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है।जब लोगों को उस योजना व विवरण की पूरी बात पता चलती है की स्टीमेट के अनुसार कार्य नहीं हो रहा तब खाए प्रसाद के दिन याद तो आता है,किन्तु वह पुष्प माला,वह स्वागत,वह ख़ुशी हर कुछ गम में यूं बदल जाता है।


जब "गम" हुआ तो लोगों में विश्वास "कम" हुआ! कार्य विवरण व प्राक्कलित राशि के अनुसार कार्य ठीक तरीके से नहीं होने पर लोगों में आक्रोश बढ़ना तो स्वभाविक है।इसलिये की वह योजना उन लोगों के लाभप्रद है।लोग फिर अनियमितता को लेकर उस कार्य के विवरण व प्राक्कलित राशि को किसी तरह ढूंढने पर भंडा-फोड़ करते हैं!तब उस योजना का नाम व शिलान्यास कर्ता  के बाद संवेदक भी बदनाम हो जाता है! क्योंकि प्राक्कलित राशि व कार्य के विवरण(स्टीमेट)के अनुसार कार्य में संवेदक के द्वारा अनियमितता बरती जाती है।


कार्य होने के पश्चात या कार्य दौरान के मध्यांतर ही उसके खिलाफ आवाज उठती है।पत्रकार बुलाओ,पत्रकार


आखिर क्यों ?तो यहाँ व इतना कुछ होने से पूर्व तब जाकर मन में एक विचार आता है, "काश" उस "शिलान्यास पट" पर प्रकालित राशि सहित कार्य के विवरण(स्टीमेट) भी सुनहरे अक्षरों में लिखा होता।जी हाँ,मैं पूर्ण रूप से दावा के साथ कहता हूँ की मात्र इतना कर देने से कार्य कुछ हद तक तो सही तरीके से ही होगा।यह "यूनिवर्सल एक्सप्रेस न्यूज़" का एक विचार व बुलंद आवाज में दावा है!


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