रविवार, 21 जुलाई 2019

जीवन संदेश (आत्ममंथन)

 जीवन संदेश 


वशिष्ठ चौबे लखनऊ


हम जिंदगी में कामयाब होना उतना ही जरूरी समझते हैं जितना जरूरी, जिंदा रहने के लिए साँस लेना है तो हम अवश्य कामयाब होंगे। हम सहस्त्र बार नीचे गिरकर फिर से सहस्त्र बार ऊँचे उठने का प्रयास करते हैं तो जरूर सफल हो जाएंगे। हमारे लक्ष्य में इतनी जान है कि उसे हासिल करने के लिए अपनी जान लगा दें तो हम जरूर इतिहास रच जाएंगे, यही सफलता प्राप्त करने का अव्यर्थ साधन है।


इतिहास में कई ऐसे लोग हुए है जिन्होंने लगन, निरंतर प्रयास और परिश्रम के बल पर फर्श से अर्श तक कामयाबी की उड़ान भरे हैं, क्योंकि उन्हें खुद पर विश्वास था। हम उनकी कहानियां पढ़कर खुश होते हैं लेकिन कभी यह नही सोचते कि हमें भी कुछ ऐसा कर गुजरना चाहिए कि हमारे नाम की सफल कहानी लिखी जाए, कभी नही सोचते और सोचते भी हैं तो केवल सोचकर ही रह जाते हैं, करते नही। अपनी आरामदायक स्थिति से बाहर निकलना ही नही चाहते। अपने आप से पूछिये, खुद से सवाल कीजिये कि क्या हम ऐसे ही दुनिया से चले जायेंगे? हम जाएंगे तो हमें याद करने वाला कोई नही होगा?


सच तो यह है कि जिस तरह हम जी रहे हैं। डर, भय और आलस्य में जी रहे हैं। ऐसे में तो हमें याद करने वाला कोई भी नही होगा। लोग हमें याद तभी रखेंगे जब जब इतिहास रचेंगे। कुछ ऐसा कर जाएं जो केवल हम ही कर पाएं और कोई वह सोच भी न सके तभी हम इतिहास रचेंगे। इसके लिए दृढ़-संकल्पित होना पड़ेगा, खुद में जिद पैदा करना पड़ेगा, पागलपन की हद तक जुनून पैदा करना होगा, अपने अंदर जज्बे की आग को जलाना होगा, ठानना पड़ेगा, डटना पड़ेगा क्योंकि इतिहास डरने से नही डटने से रचे जाते हैं।


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