सूत जी ने कहा, मुनीश्वरो तुम्हारा यह प्रश्न तो बड़ा ही पवित्र और अत्यंत अद्भुत है! इस विषय में महादेव जी ही वक्ता हो सकते हैं! दूसरा कोई पुरुष कभी और कहीं भी इसका प्रतिपादन नहीं कर सकता है! इस प्रश्न के समाधान के लिए भगवान शिव ने जो कुछ कहा है, उसे मैंने गुरु जी के मुख से जिस प्रकार सुना है! उसी तरह कर्मश: वर्णन करूंगा! एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म स्वरूप होने के कारण सकल निराकार कहे गए हैं! रूपवान होने के कारण उन्हें सकल भी कहा गया है !इसलिए भी सकल और निष्कल दोनों हो शिव के सकल निराकर होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है! अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है ! इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह साकार स्वरूप का प्रतीक होता है! सकल और अकल समस्त अंग आकार सहित साकार और अंग आकार से सर्वथा रहित निराकार रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा है! यही कारण है कि सब लोग लिंग निराकार और मूर्ति साकार दोनों रूपों में ही सदा भगवान शिव की पूजा करते हैं! शिव से भिन्न में जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, वे साक्षात् ब्रह्म नहीं है! इसलिए कहीं भी उनके लिए निराकार लिंग नहीं उपलब्ध होता है! पूर्व काल में बुद्धिमान ब्रह्मपुत्र सनत कुमार मुनि ने मंदराचल पर नंदीकेश्वर से इसी प्रश्न का उत्तर प्राप्त किया! सनत कुमार बोले भगवान शिव से भिन्न जो देवता है! उन सब की पूजा के लिए सर्वत्र प्राय मूर्ति मात्र ही अधिक संख्या में देखा और सुना जाता है! केवल भगवान शिव की ही पूजा में लिंग और मूर्ति दोनों का उपयोग देखने में आता है! अतः कल्याणमय नंदीकेश्वर इस विषय में जो तत्व की बात हो उसे मुझे इस प्रकार बताइए, जिससे अच्छी तरह समझ में आ जाए! नंदीकेश्वर ने कहा निष्पाप ब्रह्म कुमार आपके इस प्रश्न का हम जैसे लोगों के द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता है! क्योंकि यह गोपनीय विषय है और लिंग साक्षात ब्रह्मा का प्रतीक है! तथापि आप शिव भक्त है! इसलिए इस विषय में भगवान शिव ने जो कुछ बताया है! उसे ही आपके समक्ष कहता हूं! भगवान ब्रह्म स्वरूप और निष्फल निराकार है! इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिगं का उपयोग होता है! संपूर्ण वेदों का यही मत है! संनत कुमार जी बोले, महाभाग योगेंद्र आपने भगवान शिव तथा दूसरे देवताओं के पूजन में लिंग और मूर्ति के प्रचार का जो रहस्य विभाग पूर्वक बताया है! वह यथार्थ है इसलिए लिंग और मूर्ति की उत्पत्ति का वृतांत है! उसी को मैं इस समय सुनना चाहता हूं! लिंग के प्रकाटय का रहस्य सूचित करने वाले इस को बताने का कष्ठ करे! उत्तर में भगवान महादेव के फल के अभाव का प्रसंग सुनाना आरंभ किया! उन्होंने ब्रह्मा विष्णु के विवाद, देवताओं की व्याकुलता एवं चिंता, देवताओं का दिव्य कैलाश शिखर पर गमन, उनके द्वारा चंद्रशेखर महादेव का स्तवन ,देवताओं से प्रेरित हुए महादेव जी का ब्रह्मा और विष्णु के विवाद स्थल में आगमन तथा दोनों के बीच में निष्कल आदि अंत रहित भीषण अग्निस्तंभ के रूप में इनका आविर्भाव आदि! प्रसंगों की कथा कही तदनंतर श्री ब्रह्मा और विष्णु दोनों के द्वारा इस ज्योतिर्मय स्तंभ की ऊंचाई और गहराई का थाह लेने की चेष्टा एवं केतकी पुष्प को साप, वरदान आदि के प्रसंग भी सुनाएं!
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