आभायें ( संपादकीय)
आज श्रावण मास का प्रथम दिन है! श्रावण मास के दोनों पक्षों के प्रत्येक दिन सृष्टि स्थापना का शुभ आरंभ है!ग्रहो-नवग्रहो और विभिन्न ग्रहों-उपग्रहो की गणना का आभास किया जा सकता है !यह मानव की आभा है! अर्धनारीश्वर स्वरूप इस संसार में व्याप्त है!हम उसकी आभा का स्थापित स्वरूप है! लेकिन मानव का भौतिक विकास तेज गति से होता है! स्थिर सजीवों में इसकी गति अति-सामान्य होती है! मानव समाज की नैतिकता स्थिर हो गई है! सामाजिक विपन्नता मनुष्य के भीतर आघात होता है! हम अपने कर्तव्य की सार्थकता का चितंन नहीं करते हैं! अपने मूल कर्तव्य के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं! जीवन की सार्थकता के महत्व को समझने का प्रयास नहीं करते हैं! सुख-सुविधाओं का दुरुपयोग करते रहते हैं! कर्म का वास्तविक ज्ञान हमें करना चाहिए, होना चाहिए! देश में कई राज्यों में भारी आभा परिवर्तन से जन जीवन तहस-नहस हो रहा है! उन लोगों को हेल्प की आवश्यकता है! मुझे लगता है हम सबको इसमें सहयोग करना चाहिए !जिस प्रकार उचित हो! परिवारों के जीवन संकट में है!सरकार प्रयासों की पहुंच बढ़ाने का प्रयास कर रही है!
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
बुधवार, 17 जुलाई 2019
आभायें (संपादकीय)
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