शनिवार, 15 जून 2019

राम का नहीं, डॉक्टरों का मुद्दा है


ममता जी! यह जय श्रीराम का नहीं, डॉक्टरों का मुद्दा है।
दादागिरी की तो पूरे देश को परिणाम भुगतने होंगे।

15 जून को भी देश भर में चिकित्सा व्यवस्था अस्त व्यस्त रही। पांच दिन पहले कोलकाता में एक जूनियर डॉक्टर के साथ अस्पताल में मारपीट करने के मामले में पहले पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल हुई तो धीरे धीरे पूरे देश में हड़ताल फैल रही है। इससे आम मरीज को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने यदि बिना शर्त माफी नहीं मांगी तो देश भर के एम्स अस्पतालों में 17 जून से बेमियादी हड़ताल शुरू हो जाएगी। असल में बंगाल के डॉक्टरों की हड़ताल को ममता ने गंभीरता के साथ नहीं लिया। हड़ताल खत्म करवाने के लिए ममता ने न केवल धमकी दी, बल्कि कहा कि मुस्लिम मरीज होने के कारण डॉक्टर हड़ताल कर रहे हैं। ममता का यह बयान पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना था। असल में ममता ने पिछले दिनों जिस प्रकार जयश्रीराम के नारे लगाने वालों के साथ व्यवहार किया वैसा ही व्यवहार डॉक्टरों के साथ ही किया गया। सब जानते हैं कि जयश्रीराम के नारे लगाने वालों को जेल तक भिजवा दिया था। ममता का कहना रहा कि जय श्रीराम का नारा लगाने वालों को वे छोड़ेंगी नहीं। लेकिन इस बार ममता का पाला डॉक्टरों से पड़ा है। इसलिए जो हड़ताल बंगाल में हो रही थी, वो धीरे धीरे पूरे देश में फैल गई है। बंगाल में तो अराजकता का माहौल पहले से ही बना हुआ है। डॉक्टरों की हड़ताल ने आग में घी डालने का काम किया है। समझ में नहीं आता कि ममता बनर्जी कैसी राजनेता है? माहौल को देखकर निर्णय नहीं ले रही है। यह माना कि ममता की छवि एक जूझारू राजनेता की है, लेकिन हर मौके पर दादागिरी सफल नहीं होती है। लोकसभा चुनाव में मात्र 22 सीटे मिलने से ममता को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि अब पश्चिम बंगाल में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। पश्चिम बंगाल के सरकारी अस्पतालों में अधिकांश डॉक्टर बंगाल के ही रहने वाले हैं। जब डॉक्टरों का गुस्सा ममता के प्रति इतना है तो फिर ममता को धमकी नहीं देनी चाहिए। ममता जयश्रीराम नारा लगाने वालों को तो जेल में डाल सकती है, लेकिन डॉक्टरों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है। कल तक जो ममता बनर्जी धमकाने वाली भाषा बोल रही थी, वो ही ममता बनर्जी 15 जून को कोलकाता के अस्पताल में भर्ती घायल डॉक्टर से मिल रही हैं। अच्छा हो ममता बनर्जी माहौल को समझे और डॉक्टरों के साथ बैठकर मामले को सुलझाए। ममता को इस पूरे घटनाक्रम को साम्प्रदायिक रंग देने की जरुरत नहीं है। यदि डॉक्टरों को सुरक्षा की जरूरत है तो बंगाल सरकार को सुरक्षा उपलब्ध करवानी चाहिए। ममता को यह भी समझना चाहिए कि आबादी के हिसाब से डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है। रेजीडेंट डॉक्टरों को 18 घंटे तक अस्पतालों में काम करना होता है। सरकारी अस्पताल रेजीडेंट डॉक्टरों के भरोसे ही चल रहे हैं। ऐसे में रेजीडेंट डॉक्टरों को सुरक्षा और सुविधाएं मिलनी ही चाहिए।


एस.पी.मित्तल


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