शनिवार, 29 जून 2019

हार को स्वीकार करना चाहिए

ऐसे इस्तीफे पटकवाने से भला क्या होगा ? राहुल गांधी के बाल हठ से बर्बाद हो रही है कांग्रेस
आखिर अब तक क्यूँ अपना वर्चस्व सिद्ध करने में लगे हैं


जब से पूरे देश में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई है । तब से राहुल गांधी मुंह फुलाए बैठे हैं।और अपना अध्यक्ष पद छोड़कर कोप भवन में विराजमान है । इस उम्मीद के साथ कि कोई फिर उनके पास जाए और मनुहार करते हुए कहे की - नहीं साहब ! मेहरबानी करके आप पुनः प्रधानमंत्री के उम्मीदवार .....( नहीं नहीं माफ कीजिएगा,वो तो कैसे बनेंगे यार ?? ) आप एक बार फिर बने रहिए । हम आपके बिना कैसे रहेंगे ?

बजाय अपनी कमी स्वीकार करने के राहुल गांधी ने भी अब तक अपना बाल हठ नहीं छोड़ा है। दो दिन पहले तो यूथ कांग्रेस की एक मीटिंग में यह तक कह दिया कि मुझे पद छोड़े हुए 1 महीना हो गया है , लेकिन लोग अभी भी अपनी कुर्सियों पर टिके हैं। कोई भी मेरे साथ इस्तीफा देकर अपनी कुर्सी खाली करने को तैयार नहीं है ।
अब बताओ यह भी कोई बात हुई भला ! कोई उनसे यह कहे कि ,क्यों राहुल जी आप तो पुश्तैनी राजा हैं। जो बेचारे गैर गांधी कार्यकर्ता हैं वह पूरा जीवन पार्टी की सेवा करते हुए अपने घर परिवार को ताक पर रखकर गली-गली गांव-गांव कांग्रेस का प्रचार करने के लिए मारे मारे फिर रहे हैं । और बड़ी मुश्किल से पार्टी में अपना सम्मानजनक पद पाकर काम कर रहे हैं। वह भला इस बात से प्रभावित होकर पद क्यों छोड़े ? वह भी एकमात्र कारण से की उनके अध्यक्ष अपनी ज़िद्द पर सवार है । देखा जाए तो उसमें *गलती सबसे बड़ी राहुल गांधी की खुद की है । जब लोगों को लोकसभा के टिकट बांटे जा रहे थे , तब राहुल गांधी आंखें बंद कर अपने मुट्ठी अनुभवहीन नेताओं से घिरे रहे , जो की जैसा मन में आया वैसे ही पट्टी राहुल को पढ़ाते रहे । राहुल भी बिल्कुल अपनी अनुभवहीन युवा टीम के भरोसे सभी वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर उल्टे सीधे फैसले लेते रहे।
देखा जाए तो कांग्रेस को पिछले 10 साल में जितना नुकसान राहुल गांधी के बाल हठ की वजह से हुआ है , उतना नुकसान शायद पिछले 70 साल में कभी नहीं हुआ है । परंतु अब तक भी राहुल गांधी इस बात को समझने को तैयार नहीं है कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की जिद सबसे बड़ी गलती थी। और इस गलती ने ही कांग्रेस को आज के इस कगार पर लाकर खड़ा किया है। जहां पर कांग्रेस एक प्रादेशिक दल की तरह अल्पमत में आ गई है। बजाय इसके की लोकसभा के टिकटों के बंटन के दौरान राहुल की टीम द्वारा की गई गलतियों को स्वीकार करने के, राहुल गांधी अब भी अपनी नाकारा युवा टीम को पूरे देश में कांग्रेस की कमान सौंपना चाहते हैं ।और हमेशा की तरह अब की बार भी उनका निशाना वरिष्ठ और अनुभवी लोग ही है । ताकि युवाओं के लिए रास्ता साफ हो सके। आम लोगों की भाषा में सुनने पर यह बहुत सुखद लगता है । परंतु यथार्थ का धरातल यह है कि यदि उन्होंने ऐसा कर दिया तो कांग्रेस का नामोनिशान मिट जाएगा। वैसे भी कांग्रेस में अब अनुभवी नेता अंतर्मन में राहुल के हठीले स्वभाव के सामने थकान महसूस कर रहे हैं।उनके लिए तो दोनों तरफ ही मरण है। एक तरफ राहुल गांधी जैसा अनुभवहीन नेतृत्व जिसको स्वीकार करने के लिए लिए आम जनता को समझाना बहुत मुश्किल दिखाई दे रहा है । और दूसरी तरफ राहुल गांधी का ज़िद्दी स्वभाव। जिसके चलते राहुल गांधी वरिष्ठ नेताओं के पीछे लठ लेकर घूम हैं। राहुल के इस चिड़चिड़े रवैये से यही लग रहा है कि वह अपनी गलती मानने की बजाय इसको दोष बाकी सब अनुभवी नेताओं पर मढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
राहुल को वरिष्ठ नेताओं को पार्टी में हाशिए पर ले जाने का इतना ही शौंक है , तो इस से पहले यह भी मूल्यांकन करना होगा कि उनकी ताजा युवा टीम में क्या वाकई इतना दम है कि कांग्रेस की खोई हुई इज्जत वापस ला सके ? उत्तर है नहीं ... क्योंकि इतना ही दम होता तो लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रचार की कमान खुद राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित ज्योतिरादित्य सिंधिया,सचिन पायलट , जितिन प्रशाद,रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे उनके करीबियों में हाथ में ही थी।जो कि सब के सब फेल साबित हुए हैं। मजे की बात यह है कि इनमें से भी किसी ने अब तक अपना इस्तीफा राहुल की टेबल पर नहीं रखा है। *कायदे से तो पहले ये लोग ही इस्तीफा दें तब कोई बात है। वर्ना बाकी सब तो खेल तमाशा है .... परंतु राहुल को फिर भी आशा है !


नरेश राघानी


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