मंगलवार, 21 मई 2019

एग्जिट पोल पर विश्वास नहीं

 ए'ग्जिट पोल के आकंड़ों को लिया वापिस


इसी तरह का चुनावी सर्वे सामने आना था। आप को क्या उम्मीद थी? वो चैनल जो दिन रात सत्ता के चरण पखारने में लगे हैं मोदी की इच्छा और जरूरत से अलग कोई आंकड़ा देने की हिमाकत कर सकते हैं? उस चैनल के पत्रकार जो सामने मौजूद मोदी से एक सवाल तक नहीं पूछ सकते हैं वो उनकी सत्ता के जमींदोज होने की घोषणा कर सकते हैं। लिहाजा उन्हें जो करना था और पिछले पांच सालों से जो वो कर रहे थे उसी को उन्होंने आगे बढ़ाया है।


इसमें कोई चकित करने वाली बात नहीं है। आश्चर्य तब होता जब वो इससे अलग कोई नतीजा दे रहे होते। दरअसल इन चैनलों को आखिरी समय तक बीजेपी को जीतते हुए दिखाना है। क्योंकि यह मोदी और अमित शाह की जरूरत है। सत्ता अब उनके वजूद की प्राथमिक शर्त बन गयी है। लिहाजा वो अपने आखिरी दम तक उसे हासिल करने की कोशिश करेंगे।


अब उसके लिए क्या कुछ करना पड़ सकता है। और क्या कुछ करेंगे वह तो भविष्य के गर्भ में है। सच यह है कि अगर बीजेपी की सत्ता नहीं बनती हुई दिखती है तो अगले तीन दिन में जो होगा वह शायद भूतो न भविष्यति हो। क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए। किसी भी कीमत मतलब किसी भी।


उसके जाने का मतलब उनकी जिंदगी का छूटना है। और कोई भी शख्स इतनी आसानी से अपनी जिंदगी नहीं छोड़ता है। लिहाजा इन तीन दिनों में जो कुछ भी हो जाए वह कम होगा। वैसे तो बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस और उसमें पीएम की मौजूदगी की एक व्याख्या ये भी की जा रही है कि अब वह अमित शाह को एक्जीक्यूटिव हेड के तौर पर पेश कर खुद को स्टेट्समैन की भूमिका में ले आने की तैयारी शुरू कर दिए हैं।


यह प्रेस कांफ्रेंस उसकी शुरूआत भर थी। वैसे भी आप को बता दें कि संघ में प्रचारक रहते मोदी बेहद शौकीन मिजाज थे। राजशाहाना जिंदगी उनकी स्वाभाविक पसंद थी। यही वजह है कि इस लोकतंत्र के भीतर भी सत्ता के शीर्ष पर किसी पीएम की बनिस्पत वह राजा सरीखा व्यवहार करते ज्यादा दिखे।


ऊपर कही गयी बातों की पुष्टि गुजरात के पूर्व गृहमंत्री स्वर्गीय हरेन पांड्या के बयान से की जा सकती है। जिसमें उन्होंने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले ही बताया था कि संघ में रहते मोदी लक्जरी जीवन पसंद करते थे। जिसको लेकर संघ के भीतर उनके प्रति एक तरह की नाराजगी थी।


पांड्या का कहना था कि वह राजाओं की तरह जीवन जीना चाहते थे। और इसी के चलते उनकी कुछ ही दिनों में संघ से विदाई तय मानी जा रही थी। लेकिन उसी बीच गुजरात की राजनीति में आए नये घटनाक्रमों ने उन्हें नया जीवन दे दिया। सत्ता में आने के बाद मोदी की जीवनशैली में ये बातें बिल्कुल साफ तौर पर देखी जा सकती हैं।
बहरहाल चैनलों ने मोदी को जिताने की दौड़ में जितने ब्लंडर किए हैं उसके लिए उन्हें कभी माफ नहीं किया जा सकता है। टाइम्स नाऊ ने तो उत्तराखंड में बाकायदा आप यानि आम आदमी पार्टी को 2.90 फीसदी वोट दे दिए हैं जो बीएसपी से भी ज्यादा हैं। जबकि सचाई ये है कि आप वहां चुनाव ही नहीं लड़ी है।


इसी तरह से एक एजेंसी ने हरियाणा में बीजेपी को 22 सीटें दे दी है। जबकि सूबे में लोकसभा सीटों की संख्या महज 10 है। यूपी में किसी ने गठबंधन को 56 दिया तो किसी ने 17 और किसी ने 11। अब इतनी विविधता भला क्या किसी एग्जिट पोल की हो सकती है। ऐसे में किसी के लिए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ये आंकड़े कैसे तैयार किए गए हैं। हां अब ये भांग के नशे में बनाए गए हैं या फिर सत्ता ने गर्दन पर पिस्तौल रख कर बनवाया है। फैसला करना आप का काम है।


अपनी भूल का एहसास इन चैनलों को भी होने लगा है। इंडिया टुडे ने अपने कई आंकड़ों को वेबसाइट से हटा लिया है। खुद को सबसे ज्यादा विश्वसनीय बताने वाले चैनल का अगर ये हाल है तो बाकियों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है


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