मर्यादाओं की परीक्षा
संपादकीय
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान की निर्धारित तिथि अब बहुत दूर नहीं रह गई है ! जैसे- जैसे तारीख नजदीक आ रही है ,वैसे- वैसे ही राजनेताओं की बेचैनी बढ़ रही है !चुनाव प्रचार बहुत तेज और आक्रामक को चला हैं ! राजनीतिक दल एक दूसरे पर विभिन्न प्रकार के आरोप मढ़ रहे हैं, जिसमें झूठ और सच कोई मायने नहीं रखता है ! बल्कि ,कई बार तो मर्यादित भाषा और टिप्पणियों से भी कोई गुरेज नहीं किया जा रहा हैं, शब्दों के भाव और उनके अर्थ का वास्तविक चित्रण नहीं किया जा रहा है !अर्थ का अनर्थ करने में किसी प्रकार की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है! एक राजनेता में यह क्षमता होनी चाहिए वह जनता को संतुष्ट कर सके, उनकी आवश्यकता, अपेक्षाओं और वास्तविक समस्याओं को समझ सके! एक इमानदार नेता वही होता है जो एक बार बिकने के बाद दोबारा खरीदा ना जा सके, लेकिन यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं है !यहां इसके विपरीत कोई भी नेता किसी बात को गंभीरता से नहीं लेता है, यहां तक वह अपनी ही बातों पर भरोसा नहीं करता है और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि जो भी कह रहा है ,उस पर जनता कैसे विश्वास कर लेती है ?जबकि स्पष्ट बात है कि वह अपनी बातों पर विश्वास नहीं करता है! उसके बावजूद जनता उस पर विश्वास किस प्रकार करती हैं !वास्तविकता से दूर जनता को इस प्रकार के विश्वास से बचना चाहिए !वास्तविकता में झांकने का प्रयास करना चाहिए ,वास्तव में जनता के हित और विकास की समझ रखने वाले दल अथवा राजनेता को भी समर्थन करने से पहले विचार- विनिमय करना आवश्यक होता है ! हालांकि यह केवल मत प्राप्त करने के अपने -अपने तरीके- विचार हैं !जो भी राजनेता इस समय चुनाव समर में अपने बल और विवेक तर्क शक्ति का उपयोग कर रहे हैं !वह हारने और जीतने के बाद कई बार एक ही मंच पर नजर आएंगे केवल जनता को भ्रमित करने के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते हैं! नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है! इसलिए प्रत्येक भारतवासी को इस बात से पुष्ट होने की सख्त आवश्यकता है कि वह लोकसभा चुनाव में हिस्सेदार हैं ,और उसे अपने मत का उचित उपयोग करने का पूरा अधिकार है !उसको यह करना भी चाहिए ,उसकी जिम्मेदारी भी है!मर्यादाओं की परीक्षा
संपादकीय
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान की निर्धारित तिथि अब बहुत दूर नहीं रह गई है ! जैसे- जैसे तारीख नजदीक आ रही है ,वैसे- वैसे ही राजनेताओं की बेचैनी बढ़ रही है !चुनाव प्रचार बहुत तेज और आक्रामक को चला हैं ! राजनीतिक दल एक दूसरे पर विभिन्न प्रकार के आरोप मढ़ रहे हैं, जिसमें झूठ और सच कोई मायने नहीं रखता है ! बल्कि ,कई बार तो मर्यादित भाषा और टिप्पणियों से भी कोई गुरेज नहीं किया जा रहा हैं, शब्दों के भाव और उनके अर्थ का वास्तविक चित्रण नहीं किया जा रहा है !अर्थ का अनर्थ करने में किसी प्रकार की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है! एक राजनेता में यह क्षमता होनी चाहिए वह जनता को संतुष्ट कर सके, उनकी आवश्यकता, अपेक्षाओं और वास्तविक समस्याओं को समझ सके! एक इमानदार नेता वही होता है जो एक बार बिकने के बाद दोबारा खरीदा ना जा सके, लेकिन यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं है !यहां इसके विपरीत कोई भी नेता किसी बात को गंभीरता से नहीं लेता है, यहां तक वह अपनी ही बातों पर भरोसा नहीं करता है और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि जो भी कह रहा है ,उस पर जनता कैसे विश्वास कर लेती है ?जबकि स्पष्ट बात है कि वह अपनी बातों पर विश्वास नहीं करता है! उसके बावजूद जनता उस पर विश्वास किस प्रकार करती हैं !वास्तविकता से दूर जनता को इस प्रकार के विश्वास से बचना चाहिए !वास्तविकता में झांकने का प्रयास करना चाहिए ,वास्तव में जनता के हित और विकास की समझ रखने वाले दल अथवा राजनेता को भी समर्थन करने से पहले विचार- विनिमय करना आवश्यक होता है ! हालांकि यह केवल मत प्राप्त करने के अपने -अपने तरीके- विचार हैं !जो भी राजनेता इस समय चुनाव समर में अपने बल और विवेक तर्क शक्ति का उपयोग कर रहे हैं !वह हारने और जीतने के बाद कई बार एक ही मंच पर नजर आएंगे केवल जनता को भ्रमित करने के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते हैं! नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है! इसलिए प्रत्येक भारतवासी को इस बात से पुष्ट होने की सख्त आवश्यकता है कि वह लोकसभा चुनाव में हिस्सेदार हैं ,और उसे अपने मत का उचित उपयोग करने का पूरा अधिकार है !उसको यह करना भी चाहिए ,उसकी जिम्मेदारी भी है!universalexpress.page
रविवार, 7 अप्रैल 2019
मर्यादाओं की परीक्षा
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