जनहित और जागृति
संपादकीय
लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वयं में एक संपूर्ण व्यवस्था है! जहां जनता के हितों को ध्यान में रखकर सभी निर्णय निर्धारित किए जाते हैं ! जिसकी वजह से विधिवत ढंग से सभी विभागों को अधिनियम की एक श्रृंखला में पिरोया गया है ! अधिनियमो का निर्माण जनता के संपूर्ण हितों को ध्यान में रखकर किया गया है, जो स्वयं प्रभावी ढंग से कार्यरत भी हैं ! इस संपूर्ण व्यवस्था के उपरांत भी गणराज्य में समस्याओं का अंबार हैं! जिसमें मूल आवश्यकताओं की प्राथमिकता के आधार पर समीक्षा नहीं की जाती है! इसकी ठीक-ठीक जानकारी भी किसी के पास नहीं है !जिसका दंड निर्दोष जनता को भुगतना पड़ता है !जनता मूल आवश्यकताओ कि अधिकारी होने के बाद भी इस अधिकार से वंचित क्यों है ?यह एक बहुत गंभीर सवाल है ,जिस पर मंथन और चिंतन की अत्यंत आवश्यकता है! मान लिया जाए लोकतंत्र में संघीय शक्तियों की जागृति पूरी तरह कार्य नहीं कर पा रही है, जिसकी वजह से वास्तविक जागरण जनता से अभी भी दूर है ! प्रेस और मीडिया निश्चित विषयों पर अध्ययन कर रहे हैं ,और बहुत सारी समस्याओं का चित्रण भी करते रहते हैं! लेकिन उसके उपरांत भी प्रेस और मीडिया को विषयात्मक परिभाषा व निरंतर गहन अध्ययन करने की सख्त आवश्यकता बनी रहती है! जिसके परिणाम अपेक्षाकृत सिद्ध होते रहते हैं !परंतु यथावत स्थिति के विपरीत जन जागरण का अधिक प्रभाव समय की आवश्यकता प्रतीत हो रहा है ! इस विषय पर हम सबको नीजी दृष्टिकोण के द्वारा आयामों का आकलन करना चाहिए! यह बात भी बिल्कुल सही है ,प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही समस्या को प्राथमिकता देने का प्रयास करता रहता है !जबकि कई समस्याओं का संबंध एक ही विषय से होता है! संभवतः परिणाम भी विषय सगंत रहते हैं! परंतु सच यह है कि हमारा जनसंचार अत्याधिक सीमित है जिसका उपयोग हम अपने निजी कार्य, रोजमर्रा के कार्य और सीमित व्यापार से अधिक नहीं कर पा रहे हैं! जनसंचार के माध्यम गति का उपयोग कुल आबादी का 7% भाग ही कर पा रहा है हम संसार की वास्तविकता से पिछड़ रहे हैं !जिसके परिणाम स्वरुप हमें स्थिरता की परिधि के बाहर आना होगा! विश्व में भारत का अग्रणी बना रहना और विश्व में भारतीयों की मनस्वी धारणा समय-समय पर चरितार्थ होती रहती है! जिसका एक माध्यम संचार है और संचार के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास हमें करना चाहिए!universalexpress.page
रविवार, 14 अप्रैल 2019
जनहित और जागृति( संपादकीय)
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